काशीपुर। उत्तराखंड की औद्योगिक एवं पौराणिक नगरी काशीपुर की राजनीति इन दिनों एक नए समीकरण की ओर बढ़ रही है। नगर निगम चुनाव में जीत के बाद मेयर बने भाजपा नेता दीपक बाली लगातार ऐसे फैसले ले रहे हैं, जिनसे वे जनता की उम्मीदों के केंद्र में आ गए हैं। फरवरी के पहले सप्ताह में शपथ लेने के बाद उन्होंने साफ कहा था कि वे राजनीति नहीं, बल्कि कामनीति पर भरोसा करते हैं। सात महीने का उनका कार्यकाल इस बयान की तस्दीक करता नज़र आ रहा है। सबसे ताज़ा फैसला रजिस्ट्रियों और दाखिल-खारिज की प्रक्रिया को दोबारा शुरू करने का है। मंगलवार से रजिस्ट्री कार्यालय सुचारू रूप से काम करेगा और लंबे समय से अटका दाखिल-खारिज भी अब 0% शुल्क पर संभव हो गया है। केवल ₹1000 फाइल चार्ज और एक एफिडेविट के आधार पर यह प्रक्रिया पूरी की जा सकेगी। चुनावी वादों को निभाने की यह शैली बाली को आम जनता की नज़रों में एक भरोसेमंद नेता बना रही है। शहर के 40 वार्डों में सड़क निर्माण, वर्षों पुरानी जलभराव की समस्या का समाधान और सफाई व्यवस्था में सुधार जैसे कामों ने काशीपुर की तस्वीर बदल दी है। इन प्रयासों का असर यह हुआ कि वायु गुणवत्ता में भी उल्लेखनीय सुधार दर्ज हुआ है। जनता का मूड साफ है—वे बाली के विकास कार्यों से संतुष्ट हैं और यही संतुष्टि उन्हें राजनीतिक ताकत में बदल रही है। भाजपा की आंतरिक राजनीति में भी बाली का कद तेजी से बढ़ रहा है। संगठन के अहम फैसलों में उनकी राय शामिल की जा रही है और वरिष्ठ नेताओं के साथ उनकी पकड़ मजबूत होती जा रही है। साफ है कि सात महीने का कार्यकाल उन्हें केवल मेयर नहीं, बल्कि पार्टी की पहली पंक्ति का चेहरा बना चुका है।काशीपुर विधायक त्रिलोक सिंह चीमा के साथ उनकी जोड़ी ने विकास की रफ्तार को और तेज कर दिया है। दोनों नेताओं की सामंजस्यपूर्ण कार्यशैली ने भाजपा के लिए एक मजबूत आधार तैयार किया है, जिसकी वजह से विपक्ष पूरी तरह बैकफुट पर दिखाई दे रहा है। विरोधियों के पास अब मेयर को घेरने का कोई ठोस मुद्दा नहीं बचा है। दरअसल, काशीपुर की राजनीति में यह पहली बार हो रहा है जब नगर निगम का नेतृत्व शहर की जमीनी समस्याओं से सीधे जुड़ा हुआ दिख रहा है। यह बदलाव न सिर्फ जनता के नज़रिए को बदल रहा है, बल्कि भविष्य के राजनीतिक समीकरणों को भी प्रभावित कर रहा है।
अगर यही रफ्तार बनी रही तो आने वाले दिनों में दीपक बाली का कद सिर्फ काशीपुर तक सीमित नहीं रहेगा, बल्कि उत्तराखंड की राजनीति में भी उनकी गिनती निर्णायक नेताओं में होने लगेगी।